मुहब्बत....
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हम अक्सर ये समझते हैं ,
जिसे हम प्यार करते हैं,
उसे हम भूल बैठे हैं,
हमें वो भूल बैठा है ,
मगर
ऐसा नहीं होता.
मोहब्बत दाएमी सच है ,
मोहब्बत ठहर जाती है ,
हमारी बात के अन्दर ,
मोहब्बत बैठ जाती है
हमारी जात के अंदर ,
मगर ये कम नहीं होती ।
किसी भी दुःख की सूरत में,
कभी कोई ज़रूरत में ,
कभी अनजाने से ग़म में ,
कभी लहजे की ठंडक में ,
कभी बारिश की सूरत में ,
हमारी आँख के अन्दर ,
कभी आब -ऐ -रवां बन कर ,
कभी कतरे की सूरत में ,
बज़ाहिर ऐसा लगता है ,
उससे हम भूल बैठे हों ,
या
हमें वो भूल बैठा है .
मगर ऐसा नहीं होता,
ये हरगिज़ कम नहीं होती ,
मुहब्बत दाइमी सच है,
मुहब्बत बैठ जाती है
कमाल की lines हैं....शायर का नाम तो मालूम नहीं, खोजा बहुत मगर कामरान नहीं हो पाए हैं अभी तक...तलाश जारी है, मगर जो भी हैं, दिल की खलिश को बड़ी बारीकी सेलफ्जों में पिरोया है....बहुत खूब....
तलबगार ऐ मुहब्बत,
सुखनवर सख्त
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