Bheed ka Majnu, Raat ka saaya...


भीड़ मे छुपा हुआ, भीड़ से छुपा हुआ,
मजनूओँ की फौज में, वो फिर से जा खड़ा हुआ.

इश्क़ का बहाना था, अलग कुछ फसाना था,
झूठ की मुहब्बत थी, मतलबी दीवाना था !

दिल्फ़रेबी आती थी, खुद को ही जलाना था.
खुद को मारके, अपनी लाश को छुपाना था.

अब करे तो क्या करे, वो कशमकश में जा फ़सा!

ठोकरों को खा चुका, दर्द को दबा चुका,
अश्क़ आबशार कर, वो दस बरस बहा चुका.

अब करे तो क्या करे? वो अब कहे तो क्या कहे?

कैसे वो बता सके, की सोच की बीमारी है!
एक जुनून तारी है, रोग बड़ा भारी है.
अजनबी मुहब्बत है, अजनबी से यारी है !
 
कुछ भी नहीं मुमकिन, बस ख्वाब की सवारी है?
ज़ख़्म भरने आई जो, छुरी उसी ने मारी है.

किसको वो बता सके, घाव को दिखा सके?
दिल के कुछ दराज़ों में दर्द फिर छुपा सके!

फिर से खिलखिला सके, फिर से मुस्कुरा सके?

फिर घनेरी शाम को, दो घूँट पीके जाम के


भीड़ मे छुपा हुआ, भीड़ से छुपा हुआ, 
मजनूओँ की फौज में, वो फिर से जा खड़ा हुआ.





                                                                                                                  - सुखनवर सख़्त-जानी


 

Comments

Popular posts from this blog

i miss you...

मद्रासी की विनती- महाकाव्य!!!! (Madraasi ki Vinati-Mahaakaavya!!