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Khwaahish....ek bhikhmange jaisi!!

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सड़क किनारे बैठे बूढ़े भिखमंगे की ख्वाहिश क्या है? खाना, सोना, जीते जाना.... तू भी तो भिखमंगा ही है! ख्वाब तेरे भिखमंगे जैसे!  खाना, उसके हाथ का खाना, खाना, उसके हाथ से खाना, खाना, उसके साथ ही खाना, खाना, कभी फ़ुर्सत से खाना! नींद की ख्वाहिश कैसी तेरी.....? नींद वही भिखमंगे वाली, थक कर गिरना, फट सो जाना, सो कर उठना, ख़टते जाना, ख्वाबों के एक महल में जाकर, तकिया साधे झट सो जाना  अलबेले ख्वाबों के नायक  तू चाहे है जीते जाना!  जीते जाना? वो क्यूँ आख़िर.... ये जीना भी क्या जीना है? ऐसा जीना, क्या जीना है? वजन बढ़ाके, नींद घटाके, चिंता, फ़िक्र, को गले लगाके? साँस भी लेने को ना रुकना?  दिन ढलने तक दौड़ लगाना? रात को नींद की गोली खाकर, चाँद को तक्ना, नींद ना आना, ना सुस्ताना, ना मुस्काना, ना अपनों में आना जाना? पैसे का अंबार लगाके, बीमारी पे खर्चते जाना?  इसको तू जीना कहता है? इससे तो भिखमंगा अच्छा...! मेरी मान, तो बाग़ी हो जा, कभी कभी...