जीवन, युद्ध, मित्र, और मिठास.....
जीवन की जिव्हा पर मेरे, कुछ मीठा मीठा चिपका है, मैं मन्त्र-मुग्ध हूँ, विस्मित हूँ, इससे ज़्यादा, मैं क्या बोलूं? मैं योद्धा हूँ, मेरा परिचय; मेरा जीवन संग्राम में है, मैं अर्जुन हूँ, हूँ देव-पुत्र, निर्भय हूँ, और कुछ हुनर भी है, इस युग में सारथि नहीं मेरा, मेरा कृष्ण मुझी में बसता है. जब साहस मेरा डोले तब, कुछ शूर-वीर मिल जाते हैं, जब सपना मेरा टूटे तब, सब ढाढ़स मुझे बँधाते हैं, हैं भाई मेरे, कुछ मित्र मेरे, जिनका मुझमे विश्वास अटल, इनके सम्मान का विषम कवच, मुझे तीर भेद नहीं पाते हैं, कभी लड़ते जब गिर जाता हूँ, जब गिरके ठोकर खाता हूँ, सब ईष्ट-मित्र आ जाते हैं, मेरी जान बचा ले जाते हैं, और सच्चा शूर-वीर कहकर, मुझे युद्ध में वापस लाते हैं, फिर शंख नाद बज उठता है, फिर रण-भेरी आह्वान करे, जब साहस वापस आ जाए, फिर अश्त्र-शस्त्र से कौन डरे? मैं फ़िर पूरी जी-जान लगा, फिर युद्ध-जीतने आता हूँ, और बरसों से जाना है यही, हर बार जीत के जाता हूँ!! साहस और श्रम मिलके जो, आत्म-विश्वा